व्रज – भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी, शुक्रवार, 26 अगस्त 2022
आज की विशेषता:
- आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव है
- आपका जन्म विक्रम संवत 1703 में गोकुल में हुआ था
- आप टिपारा वाले नित्यलीलास्थ गौस्वामी विट्ठलेशरायजी के सबसे छोटे पुत्र एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरजी महाराज (जिन्होंने श्रीजी को व्रज से मेवाड़ में पधराये) के काकाजी थे
- आपके 68 वचनामृत बहुत प्रसिद्ध हैं
- आपने महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य के ग्रंथ सुबोधिनीजी’ पर “व्याख्यात्मक निबन्ध” लिखा इसीलिए आप ‘श्री वल्लभजी लेखवाले’ के नाम से जानें गए
- आपने व्रज से मेवाड़ पधारते समय श्रीजी की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न हो कर श्रीजी ने उनको आज्ञा करके स्वयं के श्रृंगार धरवाये
- मेवाड़ पधारने के बाद आपने श्रीजी को आज का पीत पिछोड़ा एवं लाल कुल्हे का श्रृंगार धराया
- तब से यह श्रृंगार प्रतिवर्ष आज के दिन होता है
- क्रीड़त मनिमय आँगन रंगl
- पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
- कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग।
- गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
- गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग।
- ‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।।
- श्री काका-वल्लभजी ने यह श्रृंगार श्री गोविन्दस्वामी के उपरोक्त पद के आधार पर किया था
- श्री काका वल्लभजी का श्री वनमाली लालजी मंदिर श्रीजी मंदिर के निकट स्थित है
- आज के श्रृंगार की यह विशेषता है कि वर्षभर में केवल आज ही के दिन कुल्हे और वस्त्र अलग-अलग रंग के होते हैं
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है
- तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है
- इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरण चौकी हरी मखमल वाली आती है
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट पीला और गोटी राग रंग की पधरायी जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज रुपहरी किनारी से सुसज्जित पीले मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण फिरोजा के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, रुपहली घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- बायीं ओर मीना की चोटीजी भी धरायी जाती है
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक फ़िरोज़ा व एक सोने के) धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
- खेल के साज में पट पीला, गोटी राग-रंग की रखी जाती है
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: बाल दिसा गोपाल की
- राजभोग: मणिमय आँगन रंग क्रीडत
- आरती: खेलत लाल अपने रस मगना
- शयन: खेलत लाल वृन्दावन
- पोढ़वे: गृह आवत गोपीजन
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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जय श्री कृष्ण
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