व्रज – भाद्रपद शुक्ल छठ, शुक्रवार, 2 सितम्बर 2022
- आज की विशेषता:
- बलदेव छठ, श्रीललिताजी का उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव
- आज राधिकाजी की प्रिय सखी ललिताजी का प्राकट्योत्सव है. इसी प्रकार आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशराय जी (१७४४) का भी प्राकट्योत्सव है.
- आपका जन्म श्रीजी के नाथद्वारा पधारने के पश्चात तत्कालीन तिलकायत श्री दामोदरजी (दाऊजी) महाराज के यहाँ हुआ था. आप अनुपम सुन्दर, प्रसन्नवदन एवं सर्वांग सौष्टव युक्त थे.
- आज के दिन जन्म होने से आप सदैव ललिताजी के भाव से बिराजते थे. आपने सदैव स्वामिनी भाव से श्रीजी को विविध भोग, राग एवं श्रृंगार धरकर लाड़ लड़ाये.
- एक वैष्णव ने आपसे प्रश्न किया कि आप सदैव स्त्री वेश में क्यों रहते हैं तब आपने ललिताजी के स्वरुप में उनको दर्शन देकर संशय दूर किया.
- सामान्यतया कोई वल्लभकुल बालक का प्राकट्योत्सव हो तो श्रीजी में महाप्रभुजी की बधाई के पद गाये जाते हैं पर आज के उत्सव में आपकी अथवा श्री महाप्रभुजी की बधाई नहीं गाई जाती परन्तु ललिताजी की बधाई के पद गाये जाते हैं.
- ललिताजी के भाव से ही आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया के वस्त्र धराये जाते हैं.
सेवाक्रम:
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- श्रीजी प्रभु को नियम के पंचरंगी लहरिया के वस्त्र व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
- भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा तथा श्री स्वामिनीजी के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है
- गादी, तकिया व स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर पर सफ़ेद बिछावट की जाती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज लाल और गोटी श्याम मीना की पधरायी जाती है
- वस्त्र
- श्रीजी को आज पंचरंगी लहरिया की मलमल का सुनहरी किनारी से सजा पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छेडान का (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, एक मोर पंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- नीचे चार पान घाट की जुगावली, ऊपर मोतियों की माला आती है.
- त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत, पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशरायजी के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की व राजभोग में स्वर्ण की डाँडी वाली दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा: मंगला :
- मंगला: सब ब्रज को श्रृंगार प्रगट्यो
- राजभोग: गोकुल ते गाजत बाजत
- आरती: भादों की उजियारी आठों
- शयन: वृषभान के प्रगटी राधा
- पोढवे: गृह आवत गोपीजन
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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“ललिता सखी”
एक बार राधा जी प्रसन्न हुई, तो सोचने लगी कि मेरे जैसी कोई सखी होती तो मैं उसके साथ खेलती। इतना सोचते ही उनके अंग से एक सखी प्रकट हो गई, जो ललिता जी बन गई वो उनकी अंतरंगा सखी हैं। राधा कृष्ण का जो विस्तार है उसमे ये सखी दो रूपों से आती हैं। पहली में ये राधा जी का पक्ष लेती हैं, और जो दूसरी प्रकार की है वो भगवान कृष्ण का पक्ष लेती हैं। राधा जी की आलोचना करती हैं, पर ये सब लीला है। उनकी दृष्टि में राधा-कृष्ण एक ही हैं। उनके मन में जलन नहीं होती, क्योंकि राधा जी ही सब की आराध्या हैं। वो कृष्ण का संग कभी नहीं चाहती हैं। उन्हें राधा कृष्ण को संग देख कर ही सुख मिलता है। ऐसी त्यागमयी गोपी हैं। ऐसे ही हर गोपी का वर्णन आता है।
ललिता जी सबसे प्रधान सखी हैं, वे सर्वश्रेष्ठ हैं। राधा जी से २७ (सत्ताइस) दिन बडी हैं। इनकी आयु “चौदह वर्ष आठ माह” है। और राधा जी से बडी हैं। इनका एक नाम “अनुराधा” है। हर सखी का अलग परिधान है। ये कोई सामान्य नहीं है। संत गोपी भाव को पाने के लिए तपस्या करते हैं।
ललिता जी “यावट” गाँव की हैं।
ललिता जी की अंग:- क्राति “गौरोचन” के समान है।
वर्ण:- लालिमा युक्त “पीले रंग” का वर्ण है।
वस्त्र:- ललिता जी “मोर पंख वाले” क्रांति वस्त्रों को धारण करती हैं।
परिवार:- पिता का नाम विशोक, और माता का नाम शारदा है तथा भैरव नाम के गोप के साथ उनका विवाह हुआ।
निकुंज में इनकी सेवा:- “कपूर मिश्रित ताम्रमूल फल” राधा माधव को देती हैं। यह नित्य की सेवा है। और हर गोपी अपनी सेवा बडी तन्मयता से करती है। गोपी जीवन का उद्देश्य ही एक है, राधा माधव की सुख सामग्राी को जुटाना।
जब रासलीला शुरू हुई तो करोंडों सखियाँ थी, ये पूर्व-जन्म के संत, वेदों की ऋचाएँ थीं, जिन्होंने भगवान से उनका साथ विहार माँगा था। तो जब रास शुरू होता है। उसमें हर एक का प्रवेश नहीं था। पुरूषों का प्रवेश निषेध था। ललिता जी द्वार पर खडी थी, ललिता जी की आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता था। जब भगवान शिव आए तो ललिता जी ने मना कर दिया। तब भगवान शिव ने कहा- कि “कृष्ण हमारे आराध्य हैं”। ललिता जी ने कहा- कि “यहाँ रास में कृष्ण के अलावा और कोई पुरूष प्रवेश नहीं पा सकता”। जब शिवजी ने उनसे रास में प्रवेश पाने की युक्ति पूछी, तब ललिता जी ने उन्हें गोपी का श्रृंगार करवाया, चोली पहनाया कानों में कर्ण फूल, और घूँघट डाला, कानों में युगल मंत्र दिया, तब प्रवेश हुआ। तो कहने का अभिप्राय ललिता जी शिव जी की गुरू हो गईं, क्योंकि उन्होंने शिवजी को युगल मंत्र का उपदेश दिया। (कलियुग में ललिता जी का अवतार स्वामी हरिदास जी को माना जाता है। वो ही ललिता जी का अवतार हैं। आज से पांच सौ साल पूर्व वृंदावन के पास के गाँव में हरिदास जी का जन्म हुआ। उन्होंने अपनी संगीत साधना भगवान के विग्रह को प्रकट किया। बचपन का एक प्रसंग है। कि एक बार वो अपने पिता के साथ मंदिर में दर्शन करने गए और उनके पिता ने जल चढाने को कहा। वो भगवान शिव को जल चढानें लगे तो भगवान शिव उनके पिता से बोले- कि ये आप क्या कर रहे हो ? ये तो मेरी गुरू हैं और भला कोई गुरू से सेवा लेता है ? रास लीला में इन्होंनें मुझे मंत्र दिया था, तो ये कोई सामान्य सखी नहीं हैं। ललिता जी को शिव जी अपना गुरू मानते हैं। अतः स्वामी हरिदास जी को ललिता जी का अवतार माना जाता है।)
ललिता जी का जन्म यावट गाँव मे हुआ उनका निवास स्थान “ऊँचा गाँव” है, इनके प्रयत्नों से ही राधा माधव का मिलन हुआ। जब उन्हें पता चलता है भगवान गोवर्धन पर आते हैं। तो वो राधा जी को वृंदावन से मिलाने के लिए वहाँ लेकर आती हैं। हर प्रयास करती हैं राधा माधव को संग रखने का। ऐसी दिव्य और अलौकिक महिमा है।
ललिताजी का राधारानी की सहचरी के अतिरिक्त खंडिका नायिका के रूप में भी चित्रंण होता है, मतलब सेविका के रूप में राधा माधव के साथ आती हैं, और कभी-कभी नायिका बनकर कृष्णजी के साथ विहार करती हैं। ललिता जी एक सफल दुति के अनुरूप, मान रूप, तीक्ष बुद्वि वाली, वाकचातुर्य, आत्मीयता, नायक को रिझाने वाले व्यक्तित्व सौन्दर्य वाली हैं। बिलकुल राधारानी के जैसी ही।
संतजनों ने इनके ध्यान की विधि बताई है कि यदि हमें राधा माधव तक पहुँचना है, तो हमें इनकी आराधना करनी चाहिये, क्योंकि इनकी कृपा के बिना राधा माधव तक हम नहीं पहुँच सकते हैं। संतजन इनका ही ध्यान करते हैं।
‘ललिता जी की ध्यान विधि’
“जिनकी अंग कांति गौरोचन कांति को भी पराभूत करती है, सुन्दर बेलयुक्ता है, मोरपंख वस्त्र धारण करती हैं, उज्जवल आभूषण पहनती हैं, और जो राधा माधव की ताममूल फल से सेवा करती हैं, जो राधा जी की प्रिय सखी हैं। ऐसी ललिता जी का मै ध्यान करता हूँ”।
ललिताजी का मंत्र
“श्री लाम ललिताय स्वाहा”
ये इनका “बीज मंत्र” है। संत जन इसी मंत्र का निरंतर जप करते हैं। ये राधाजी कायव्यूहरूपा हैं।
ललिताजी के यूथ की आठ सखी इस प्रकार हैं:- रत्नप्रभा, रतिकला, सुभद्रा, चंद्र्रेखिका, भद्र्रेखिका, सुमुखी, घनिष्ठा, कल्हासी, और कलाप्नी।
जय श्री कृष्ण
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