व्रज – भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा, शनिवार, 10 सितम्बर 2022
आज की विशेषता:
- आज से सांझी का प्रारंभ, महादान
- आज का दान महादान कहा जाता है इस कारण आज श्रीजी को दान की अधिक और विशेष हांडियां अरोगायी जाती है.
- आज भोग में विशेष रूप से दूध, दही की हांडी, बसोंदी की हांडी, गुलाब जामुन, बर्फी, गुंजिया, पेडा, मगद, मोहनथाल, जलेबी आदि महादान में अरोगाये जाते हैं.
सांझी:
- आज से पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सांझी का प्रारंभ होता है तथा आश्विन कृष्ण अमावस्या को कोट की आरती के साथ ही सांझी पूर्ण होती है.
- श्रीजी मंदिर में कमलचौक में हाथीपोल के द्वार के बाहर आज से पंद्रह दिन तक संध्या-आरती पश्चात चौरासी कोस की व्रजयात्रा की लीला की सांझी मांडी जाती है.
- सफेद पत्थर के ऊपर कलात्मक रूप से केले के वृक्ष के पत्तों से विभिन्न आकर बना कर सुन्दर सांझी सजायी जाती है एवं उन्हीं पत्तों से उस दिन की लीला का नाम भी लिखा जाता है.
- भोग-आरती में सांझी के कीर्तन गाये जाते हैं.
- प्रतिदिन श्रीजी को अरोगाया एक लड्डू सांझी के आगे भोग रखा जाता है और सांझी मांडने वाले को दिया जाता है.
- आज प्रथम दिन वृजयात्रा की सांझी मांडी जाती है.
- यह सांझी अगले दिन प्रातः मंगलभोग सरे तक रहती है और तदुपरांत बड़ी कर (हटा) दी जाती है.
- कल से श्राद्धपक्ष (पितृपक्ष) प्रारंभ हो जायेगा.
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में दानलीला एवं सांझीलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है.
- इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया पर सफ़ेद व स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल होती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट गुलाबी और गोटी मोर की पधरायी जाती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर मोरपंखों से सुसज्जित स्वर्ण का रत्नजड़ित मुकुट, टोपी एवं मुकुट पिताम्बर बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी कमल आदि मालाजी धरायी जाती है.
- पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, भाभीजी वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- आरसी नित्यवत दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: श्री गोवर्धन की शिखर ते (श्रृंगार तक)
- राजभोग: कृपा अवलोकन दान दे री
- आरती: वृषभान लडेती गाइए
- शयन: आज नन्द के नंदन सों
- मान: तेरी भ्रोंह की मरोरन ते
- पोढवे: पोढ़े हरी राधिका के संग
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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जय श्री कृष्ण
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