व्रज – आश्विन कृष्ण पंचमी, गुरुवार, 15 सितम्बर 2022
आज के दिवस की विशेषताएं: आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री हरिरायजी का उत्सव है.
- आपश्री द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के आचार्य थे अतः आज का उत्सव वहां भव्यता से मनाया जाता है.
- श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में स्थित हरिरायजी की बैठक में गादी पर आभूषण धराये जाते हैं, तिलक किया जाता है और आरती की जाती हैं.
- हरिरायजी की जन्मपत्रिका पढ़ी जाती है.
- श्री विट्ठलनाथजी का राजभोग का महाप्रसाद ठाकुरजी के अरोगे उपरांत बैठकजी में गादी को भोग धरा जाता है.
- सायं श्रीजी मन्दिर और श्री विट्ठलनाथजी मंदिर के कीर्तनिया बधाई के कीर्तन और आपश्री द्वारा रचित बड़ी दानलीला का गायन करते हैं.
- आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से सिद्ध होकर आते हैं.
- वस्त्रों के साथ ही जलेबी के घेरा की छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहां से सिद्ध होकर आती हैं.
- आज श्रीजी को दान का चौथा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.
- आज श्रृंगार दर्शन में प्रभु के बड़ी डांडी का कमल धराया जाता है.
- श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- आज दानगढ़-मानगढ़ का मनोरथ होता है, सांकरी खोर के महादान का भाव भी है इसलिए गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दान की शाकघर व दूधघर में सिद्ध विशिष्ट हांडियां अरोगायी जाती है.
- आज श्रृंगार से राजभोग तक श्री हरिरायजी द्वारा रचित 35 पदों की बड़ी दानलीला एवं सायंकाल सांझी के विशेष कीर्तन भी गाये जाते हैं.
- मणिकोठा में पुष्पों की सांझी भी मांडी जाती है जिसके पुष्प द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर से आते हैं.
- साज
- श्रीजी में आज गौरस अरोगाने पधारीं मुग्ध भाव की व्रजभक्त गोपियों के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत भांतवार धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण नव रत्नों के धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी व वैजयंती माला धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर स्वर्ण का श्रीगोकुलनाथजी के हीरे-जड़ित टोपी, मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मानक के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के पक्षी वाले वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट केसरी व गोटी दान की आती है.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: गोवर्धन की शिखर ते
- राजभोग: कृपा अवलोकन दान दे री, दे री हमारो सूधो दान
- आरती: सांवरे की द्रष्टि मानो प्रेम की कटारी
- शयन: खिरक दुहाय आवत ही ब्रजवधू
- मान: नवल निकुंज नवल मृगनैनी
- पोढवे: पोढ़े प्यारे गिरधर लाल
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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जय श्री कृष्ण
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