व्रज – आश्विन कृष्ण सप्तमी, शनिवार 17 सितम्बर 2022,
आज की विशेषता: आज का श्रृंगार ऐच्छिक है.
- ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है. इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है.
- आज श्रीजी को मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका का श्रृंगार धराया जायेगा. मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.
- साज
- श्रीजी में आज श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज हरे मलमल का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहरी किनारी से सजे होते है.
- ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को गूंजा माला के साथ श्री कंठ के श्रृंगार छेड़ान के व अन्य सब भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है. जिसमें स्वर्ण और मोती के टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज कमल माला, श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और वेत्रजी का धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: रंचक चाखन दे
- राजभोग: जमुना घाट रोकी, ग्वालिन मीठी तेरी छाछ
- आरती: बंसी वारे सांवरे नेक
- शयन: दिन दिन आय गयी यह
- मान: तेरे दुहाग की महिमा
- पोढवे: पोढ़ीये लाल कुंवर कन्हाई
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता ह
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जय श्री कृष्ण
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