व्रज – आश्विन कृष्ण अष्टमी, रविवार, 18 सितम्बर 2022
आज की विशेषता: श्री महाप्रभुजी के पौत्र पुरुषोत्तमजी का उत्सव
- श्री गोपीनाथजी के नित्यलीला में प्रवेश के समय आपकी आयु 10 वर्ष की थी.
- श्री विट्ठलनाथजी ने तब आपको पुष्टिमार्गीय आचार्य के रूप में तिलक किया. आपने भी केवल 19 वर्ष की अल्पायु में नित्यलीला प्रवेश किया अतः आपके जीवन चरित्र के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है.
- आपके अविवाहित ही नित्यलीलास्थ होने से श्री गोपीनाथजी का वंश श्री पुरुषोत्तमजी के पश्चात वहीँ समाप्त हो गया.
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज दान के दिवसों के अनुरूप, मस्तक पर गौरस की स्वर्ण गौरसियाँ (कलश) लेकर आती व्रजभक्त गोपीजनों के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. इसे उत्तरार्ध के चितराम की पिछवाई भी कहते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज प्रभु को वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हीरे तथा माणक का जड़ाऊ मुकुट टोपी, मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- कस्तूरी, कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
- लाल गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी दो वैत्रजी एक स्वर्ण का धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट पीला एवं गोटी दान की आती हैं.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: हों जो गई ब्रज में दधि बेचन
- राजभोग: ऐ तुम पेंड़ो ही रोके रहत, दे री हमारो सुध दान
- आरती: सांवरे की दृष्टि मानो प्रेम की कटारी
- शयन: गर्व गहेली गुजरिया उतरो नहीं देत
- मान: आपु चलिए जू लालन
- पोढवे: तुम पोढो हों सेज बनाऊं
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- आज श्रीजी मंदिर के कमल चौक स्थित हाथीपोल की दहलीज पर गहवरवन, गहवर वन की बैठकजी, मोर कुटीर, सांकरी खोर, मोटी दान लीला और दान गढ़ मानगढ़ के भाव की सांझी मांडी जाती है.
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जय श्री कृष्ण
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