व्रज – आश्विन कृष्ण अमावस्या, रविवार, 25 सितम्बर 2022
आज श्रीजी में वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा
- नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
- श्रीजी में घर के छप्पनभोग और अदकी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं – नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से आठ दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है. नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है.
- नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 12 बजे खुलते हैं. नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी में राजभोग अपेक्षाकृत कुछ जल्दी होते हैं और लालन अपने घर राजभोग अरोग कर श्रीजी में पधारते हैं व श्रीजी की गोदी में विराजित हो छप्पनभोग अरोगते हैं. नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा (351)में अरोगायी जाती हैं.
- उत्सव रुपी वृहद मनोरथ होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.
- मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के पणा (मुरब्बा) का भोग अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात ) अरोगाये जाते हैं. छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.
आज की विशेषताएँ: कोट की आरती, सांझी की समाप्ति, छेल्ला महादान आज सर्वपितृ अमावस्या है. पुष्टिमार्ग में आज दानलीला का अंतिम दिन है और इस कारण श्रीजी में आज श्री हरिरायजी कृत बड़ी दानलीला गायी जाती है.
- दान के बीस दिनों में कई बार सात और कई बार आठ मुकुट काछनी के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज दान का आठवाँ नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
- आज श्रृंगार दर्शन में जब प्रभु को आरसी दिखावें तब स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के निकट धरी जाती है.
- दान के दिनों में जब भी वनमाला का भारी श्रृंगार धरा जावे तब यह छड़ी श्रीजी के निकट धरी जाती है.
- आज प्रभु द्वारा दूधघर का महादान अंगीकार किया जाता है.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही आदि अरोगाये जाते हैं.
- दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को दूधघर की कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है.
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में श्याम रंग की मलमल पर सुनहरी सूरजमुखी के फूल के छापा और सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र सफेद जमदानी के होते हैं.
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण जड़ाव सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर नीलम जड़ित स्वर्ण का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज कस्तूरी कली एवं कमल माला, श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट स्याम व गोटी दान की आती है.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: गोवर्धन की शिखर ते
- राजभोग: जीती जीती हो चंद्रावल नार, दान निवेर लाल घर आये
- आरती: सावरे की दृष्टि मानो प्रेम की कटारी
- शयन: कुंवरी कुंवर आये दान चुकाय
- मान: नवल कुञ्ज नवल मृगनैनी
- पोढवे: मदन मोहन श्याम पोढ़े
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- आज सांझी की समाप्ति होती है.
- श्रीजी मंदिर में आज संध्या आरती पश्चात लगभग पूरे कमल चौक में रंगीन काग़ज़ एवं सुनहरी रूपहरी पन्नी से कोट की सांझी जिसमें द्वारका नगरी मांडी जाती है.
- रंग-बिरंगे कागजों को और सुनहरी रूपहरी पन्नी काट कर विभिन्न आकार बनाकर सफेद कागजों पर चिपका कर द्वारका नगरी के विभिन्न भाग छतरियां, द्वार, भवन, गायें, बैल, हाथी, घोड़े, द्वारपाल, गोपियाँ, वैष्णवजन, विभिन्न वनचर, मयूर, वानर, गरुड़, कामधेनु आदि का सुन्दर कोट बनाया जाता है.
- कोट के समक्ष भोग धरा जाता है एवं शयन समय आरती करी जाती हैं.
- यह सांझी अगले दिन प्रातः मंगलभोग सरे तक रहती है और तदुपरांत बड़ी कर दी जाती है.
राजभोग दर्शन कीर्तन – (राग : सारंग)
दान निवेरी लाल घर आये l
आरती करत नंदजु की रानी और हँसी हँसी मंगल गीत गवाये ll 1 ll
ऐसे वचन सुने में श्रवणन बड़े महरि के पुत कहावे l
फिर फिर राय बात हँसि बूझत हमको कहौ कहा तुम लाये ll 2 ll
लाऊ कहा सुनों किन में छीन छीन सबकी दधि खाये l
‘श्रीविट्ठल गिरिधरलालने’ बातन ही दोऊ बौराये ll 3 ll
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जय श्री कृष्ण
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