नाथद्वारा (दिव्य शंखनाद)। पुष्टिमार्ग में विश्व के प्राचीनतम हिन्दू धर्म की कई रीतियों का समावेश है और विविध त्यौहारों, उत्सवों पर पंचामृत, अधिवासन, जवारा रोपण आदि रीतियाँ आदि पुरातन हिन्दू वेदों से प्रेरित हैं.
- इसी श्रंखला में पुष्टिमार्ग में आज से ललिताजी के सेवा मास का आरंभ होता है जिसमें आज से नव-विलास के उत्सव का आरंभ होता है और इन नौ दिनों में प्रतिदिन नूतन भाव अंकुरित होते हैं, इस भाव से प्रतिदिन नूतन वस्त्र और नूतन सामग्रियां श्री प्रभु को अरोगायी जाती हैं.
- सभी नौ दिन विविध रंगों के छापा के वस्त्र ठाकुरजी को धराये जाते हैं.
- आज श्रीजी सहित सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में दस मिटटी के कूंडों (पात्रों) में गेहूं के जवारे बोये जाते हैं. माटी के इन कूंडों (पात्रों) में गेहूं और जौ बोये जाते हैं.
- जिसे अंकुर-रोपण कहा जाता है.
- सात्विक, राजस, तामस आदि नौ प्रकार के गुणों के भाव से और एक निर्गुण भाव से, ऐसे दस पात्रों में ज्वारा अंकुरित किये जाते हैं.
- ये अंकुरित ज्वारा दशहरा के दिन प्रभु के श्रीमस्तक पर कलंगी के रूप में धराये जाते हैं.
- त्रेतायुग में व्रज में इन नौ दिनों गोप कन्याओं ने दैवी पूजन के भाव में प्रभु श्रीकृष्ण को विविध मनोरथ कर प्रसन्न किया था.
- प्रभु से मिलाप कर प्रभु को सर्वस्व अर्पण कर विविध भोग-सामग्रियां अरोगायी थी. यह भावना नव-विलास कहलाती है.
- श्री हरिराय महाप्रभु ने इस नवविलास के भाव से नव पद की रचना की है.
- हालांकि श्रीजी मंदिर में ये पद नहीं गाये जाते परन्तु अन्यत्र कई वैष्णव मंदिरों में प्रतिदिन एक विलास गाया जाता है.
- आज प्रथम विलास की भावना का स्थल निकुंजभवन है, मनोरथ की मुख्य सखी चन्द्रावलीजी है, मुरली एवं रास के पद गाये जाते हैं.
- इकाइयों के पद सायं भोग समय गाये जाते हैं और रास-पंचाध्यायी का पाठ भोग दर्शन का टेरा आये पश्चात एवं प्रभु शयन भोग अरोगें तब किया जाता है.