सांझी जिसमें द्वारका नगरी मांडी जाती है
नाथद्वारा (दिव्य शंखनाद)। यह प्रभु श्रीनाथजी के मंदिर में स्थित कमल चौक में बने हुए सांझी के कोट के पिछले वर्ष के दर्शन है. उल्लेखनीय है कि 15 दिनों तक बनायी जाने वाली सांझी के आखिरी दिन आसोज कृष्ण अमावस्या को ना केवल श्रीजी मंदिर बल्कि हमारी सनातन संस्कृति में जहां भी सांझी बनायी जाती है वहां कोट बनाया जाता है.
आइये इसकी भावना समझते है
- कोट में द्वारका लीला बनायी जाती है. सुनहरी रुपहरी पन्नी चमकने कागज़ के हाथी-घोडा, द्वारका के महल, पुतलियाँ, मल खम्भ, एक गोपियां, छडीदार, सिंह, वानर, पशु, पक्षी बनाए जाते है. केला के अगल बगल मगर आदि बनाए जाते है.
ऊपर की तरफ सात अथवा पांच खंड के द्वारका के महल बनाए जाते है. भाव यह है कि चौदह दिनों तक विविध खेलों से ब्रज लीला के दर्शन कराते है तो आज उसके फल स्वरुप राज लीला के भाव से कोट बनाया जाता है.
दूसरा भाव इस प्रकार है जो दान लीला से सम्बंधित है.
- दो पद है
- -दान निवेरी लाल घर आये
- -आरती करत नंदजू की रानी, हंसी हंसी मंगल गीत गवाए.
- दूसरा पद
- -कुंवरी कुंवर आये दान चुकाई.
- -चुंवत बदन आई द्वार पे जसुमति, रोहिणी लेत बलाई.
- इन पदों के भाव से गोपिजनों से दान लेकर और भक्ति का दान देकर प्रभु वर यात्रा अथवा शोभा यात्रा के रूप में शहर कोट की परिक्रमा करके नन्द घर लौटते है. नगर परिक्रमा के भाव से कोट बनाया जाता है. इसी भाव से कोट चित्रण में हाथी, घोडा, सुखपाल, सेना, सिपाही के साथ जैसे वरयात्रा निकलती है वैसा बनाया जाता है.
- अब थोडा सा भक्ति भाव देखें तो श्रीजी सेवा में कुछ भी अहेतुक नहीं होता.
- इस दान और सांझी लीला में प्रभु अपने भक्तो की चौदह दिनों की तपस्या अथवा विरह भक्ति के फलस्वरुप अपना सानिध्य कृपा के रूप में प्रदान करते है. ऐश्वर्य प्रभु का एक गुणधर्म है, अतः भक्त को प्रभु की कृपा प्राप्त होने के साथ ऐश्वर्य स्वतः प्राप्त होता है. यह प्रभु श्रीजी की सेवा प्रणालीका का अलौकिक दर्शन है. जय श्री कृष्ण.