व्रज – कार्तिक शुक्ल द्वितीया भाईदूज गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022
विशेष:–
- आज का दिन यम द्वितीया कहलाता है. ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन श्री यमुनाजी ने अपने भाई यम को तिलक कर भोजन कराया था
- सुभद्रा बहन भी आज प्रभु श्रीकृष्ण व बलदाऊजी को तिलक करती है.
- भारतीय संस्कृति में आज के दिन भाई बहन के घर जाते हैं और बहन उन्हें तिलक कर भोजन कराती है
- इस प्रकार रीती करने से भाई सुख-समृद्धिशाली बनता है व बहन को भी मनवांछित फल की प्राप्ति होती है
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- दिनभर सभी समय आरती थाली में की जाती है.
- बंटा, कुंजा, तकिया सब जडाऊ आते हैं.
- श्रीजी को आज नियम के लाल खीनखाब के चोली, सूथन, घेरदार वस्त्र धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर फुलक शाही ज़री का चीरा (ज़री की पाग) व पटका रुपहली ज़री का धराया जाता है.
- उत्सव भोग के रूप में गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से प्रभु को चाशनी वाले कसार के गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
- सखड़ी में मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में आगे के भोग धरकर श्रीजी को राजभोग की माला धरायी जाती है.
- झालर, घंटा, नौबत व शंख की ध्वनि के मध्य दण्डवत कर प्रभु को तिलक किया जाता है.
- प्रभु को बीड़ा व तुलसी समर्पित की जाती है.
- तदुपरांत विराजित सभी स्वरूपों को तिलक किया जाता है.
- आटे की चार मुठियाँ वार के चून (आटे) की आरती की जाती है और न्यौछावर की जाती है.
- तदुपरांत पहले श्रीजी के मुखियाजी श्री तिलकायतजी को तिलक करते हैं और फिर श्री तिलकायतजी सभी उपस्थित सेवकों को तिलक करते हैं
- बहन सुभद्रा के घर भोजन अरोगें इस भाव से प्रभु आज राजभोग अरोगते हैं.
- भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकीन सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं
श्रीजी दर्शन:
- साज:
- साज सेवा में आज लाल मखमल की सिलमा-सितारों की ज़री मोती के काम की, वृक्षावली के ज़रदोशी के काम वाली नित्य लीलास्थ श्री गोवर्धनलाल जी महाराज वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल रंग की खीनख़ाब का सूथन, घेरदार वागा, एवं चोली धराये जाते हैं.
- बायीं ओर कटि (कमर) पर रुपहली ज़री की किनारी वाला लाल कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल में) धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- प्रभु को आज छोटा चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मोती, विशेषकर पन्ना व सोने के उत्सव वत धराये जाते हैं
- आज के दिन सदैव ऐसा छोटा श्रृंगार ही धराया जाता है
- श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलक शाही ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना, जिसके ऊपर नीचे मोती की लड़ (माला), मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट, गोटी जडाऊ राखी जाती है
- आरसी चार झाड की दिखाई जाती है
- सायंकालिन सेवा में प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा धराये जाते हैं
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: लीला लाल गोवर्धनधर की
- राजभोग: महिमा में जानी अब न छडो
- आरती: कान्ह कुंवर के कर पल्लव
- शयन: राजे गिरिराज आज
- मान: आली री मान गढ़
- पोढवे: सोवत नींद आय गयी
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जय श्री कृष्ण
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